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शून्य का सन्धर्भ



जो जीवन हमारे चारों तरफ मौजूद है, चाहे उसे कोई परमात्मा कहे और जो जीवन हमारे भीतर मौजूद है, चाहे कोई उसे आत्मा कहे। हम उस जीवन को जानने से वंचित रह जाते हैं क्योंकि हम चुप होने मे समर्थ नही हैं। जानने के लिए चाहिए साइलेंट माइंड, यानी मौन, जानने के लिए चाहिए एक ऐसा मन जो बिलकुल चुप हो सके । लेकन हम बोलते हैं, बोलते हैं, बोलते हि रहते हैं । जागते हैं तब भी और सोते हैं तब भी। ,किसी से बात करते ह तब भी और नही बात करते हैं तब भी हमारे भीतर बोलना चल रहा है।

कभी दो लोगों को बात करते देखा है, दो लोग आपस में कभी बात नही करते, वो तो अपनी अपनि बातें करते हैं। अपनी बात मनवाने की कोशिश करते हैं। ऐक बोलता है तो दूसरा बात बीच मे काट कर अपनी ही कहना शुरु कर देता है।

हम कभी भी शून्य की अवस्था मे नही होते, सोते जागते खाते पीते अपने स्थान पर बैठे हुए कभी मुम्बई कभी चेन्नई कभी गोवा मे होते हैं। अब जब हम कहीं हैं ही नही तो वहां से लौटना कैसे।

कुछ समय पहले  प्रशांत जी से बात हुई, उनका कहना था कि मैं माला नही जपता, जो मेरे साथ है, जो मेरा अपना है उसके सामिप्य के लिये रटना क्यों