राम चरित मानस की रचना

तुलसी दास जी ने जब राम चरित मानस की रचना की,तब उनसे किसी ने पूंछा कि ....
बाबा ! आप ने इसका नाम रामायण क्यों नहीं रखा ? क्योकि इसका नाम रामायण ही है, बस आगे पीछे नाम लगा देते है, वाल्मीकि रामायण,आध्यात्मिक रामायण,आपने राम चरित मानस ही क्यों नाम रखा?
बाबा गोस्वामी जी ने कहा :-
क्योकि रामायण और राम चरित मानस में एक बहुत बड़ा अंतर है । "रामायण" का अर्थ है राम का मंदिर, राम का घर, जब हम मंदिर जाते है तो एक समय पर जाना होता है, मंदिर जाने के लिए नहाना पडता है, जब मंदिर जाते है तो खाली हाथ नहीं जाते कुछ फूल, फल साथ लेकर जाना होता है । मंदिर जाने कि शर्त होती है,मंदिर साफ सुथरा होकर जाया जाता है ।
पर मानस अर्थात सरोवर, सरोवर में ऐसी कोई शर्त नहीं होती, समय की पाबंधी नहीं होती । कोई भी हो ,कैसा भी हो सरोवर में स्नान कर सकता है । और व्यक्ति जब मैला होता है, गन्दा होता है तभी सरोवर में स्नान करने जाता है । माँ की गोद में कभी भी कैसे भी बैठा जा सकता है ।
इसलिए जो शुद्ध हो चुके है वे रामायण में चले जाए और जो शुद्ध होना चाहते है वे राम चरित मानस में आ जाए......
राम कथा जीवन के
दोष मिटाती है ....
"रामचरित मानस एहिनामा, सुनत श्रवन पाइअ विश्रामा"
राम चरित मानस तुलसीदास जी ने जब किताब पर ये शब्द लिखे तो आड़े में रामचरितमानस ऐसा नहीं लिखा, खड़े में लिखा -
राम
चरित
मानस
किसी ने गोस्वामी जी से पूंछा
आपने खड़े में क्यों लिखा ....?
तो गोस्वामी जी कहते है ... "रामचरित मानस राम दर्शन की ,राम मिलन की सीढी है , जिस प्रकार हम घर में कलर कराते है तो एक लकड़ी की सीढी लगाते है , जिसे हमारे यहाँ नसेनी कहते है, जिसमे डंडे लगे होते है । गोस्वामी जी कहते है रामचरित मानस भी राम मिलन की सीढी है, जिसके प्रथम डंडे पर पैर रखते ही श्रीराम चन्द्र जी के दर्शन होने लगते है, अर्थात यदि कोई बाल काण्ड ही पढ़ ले, तो उसे राम जी का दर्शन हो जायेगा ।

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