Hinduism

It is not easy to define Hinduism, for it is much more than a religion in the Western sense. According to some scholars, Hinduism is not exactly a religion. Also known to practitioners as Sanatana Dharma, which means everlasting or eternal religion / truth / rule, Hinduism can best be defined as a way of life based on the teachings of ancient sages and scriptures like the Vedas and Upanishads. The word 'dharma' connotes "that which supports the universe" and effectively means any path of spiritual discipline which leads to God.

Hindu Dharma, as one scholar analogizes, can be compared to a fruit tree, with its roots


(1) Representing the Vedas and Vedantas, the thick trunk

(2) Symbolizing the spiritual experiences of numerous sages, gurus and saints, its branches

(3) Representing various theological traditions, and the fruit itself, in different shapes and sizes

(4) Symbolizing various sects and subsects. However, the concept of Hinduism defies a definite definition because of its uniqueness.

Different Shakti Mantra's

श्री गणेशाय नम:
ॐ गं गणपतये नम:


ॐ सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ।
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते ॥
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नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः ।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्म ताम् ॥
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शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे ।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥
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अन्नपूर्णे सदापूर्णे शंकरः प्राणवल्लभे ।
ज्ञान वैराग्य सिद्ध्यर्थं भिक्षां देहि च पार्वती ॥
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Durga Gayatri Mantra
ॐ कात्यायन्यै च विद्महे, कन्यकुमार्यै धीमहि ।
तन्नो दुर्गा प्रचोदयत् ॥
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Durgashtakshar Mantra
ॐ ह्रीं दुं दुर्गायै नमः ॥
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Navarn Mantra नवार्ण मन्त्र
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ।
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Ma Saraswati Stuti
जय जय देवि चराचरसारे कुचयुगशोभित मुक्ताहारे ।
वीणापुस्तकरंजितहस्ते भगवति भारति देवि नमस्ते ॥
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MahaLaxmi Stuti
नमस्तेस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते ।
शङ्खचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मि नमोऽस्तुते ॥
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सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्ट भयंकरि ।
सर्वदुःख हरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तुते ॥
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सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्ति प्रदायिनि ।
मन्त्रमूर्ते सदा देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तुते ॥
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ॐ महालक्ष्मी च विद्महे, विष्णुपत्नी च धीमहि ।
तन्नो लक्ष्ह्मीः प्रचोदयात् ॥


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Devi Stuti
या देवी सर्वभूतेषु मातृरुपेण संस्थितः ।
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरुपेण संस्थितः ।
या देवी सर्वभूतेषु शान्तिरुपेण संस्थितः ।
नमस्तस्यैः नमस्तस्यैः नमस्तस्यैः नमो नमः ।
ॐ अम्बायै नमः ॥

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सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामयाः ।
सर्वे भद्राणि पश्यंतु मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत् ॥

संकटमोचन हनुमानाष्टकं

संकटमोचन हनुमानाष्टकं
Sankatamochan Hanuman Ashtakam

मत्तगयन्द छन्द
बाल समय रबि भक्षि लियो तब तीनहुँ लोक भयो अँधियारो।
ताहि सों त्रास भयो जग को यह संकट काहु सों जात न टारो।
देवन आनि करी बिनती तब छाँड़ि दियो रबि कष्ट निवारो।
को नहिं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥१॥

बालि की त्रास कपीस बसै गिरि जात महाप्रभु पंथ निहारो।
चौंकि महा मुनि साप दियो तब चाहिय कौन बिचार बिचारो।
कै द्विज रूप लिवाय महाप्रभु सो तुम दास के सोक निवारो।
को नहिं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥२॥


अंगद के सँग लेन गये सिय खोज कपीस यह बैन उचारो।
जीवत ना बचिहौ हम सो जु बिना सुधि लाए इहाँ पगु धारो।
हेरि थके तट सिंधु सबै तब लाय सिया-सुधि प्रान उबारो।
को नहिं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥३॥


रावन त्रास दई सिय को सब राक्षसि सों कहि सोक निवारो।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु जाय महा रजनीचर मारो।
चाहत सीय असोक सों आगि सु दै प्रभु मुद्रिका सोक निवारो।
को नहिं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥४॥


बान लग्यो उर लछिमन के तब प्रान तजे सुत रावन मारो।
लै गृह बैद्य सुषेन समेत तबै गिरि द्रोन सु बीर उपारो।
आनि सजीवन हाथ दई तब लछिमन के तुम प्रान उबारो।
को नहिं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥५॥

रावन जुद्ध अजान कियो तब नाग कि फाँस सबै सिर डारो।
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल मोह भयो यह संकट भारो।
आनि खगेस तबै हनुमान जु बंधन काटि सुत्रास निवारो।
को नहिं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥६॥


बंधु समेत जबै अहिरावन लै रघुनाथ पताल सिधारो।
देबिहिं पूजि भली बिधि सों बलि देउ सबै मिलि मंत्र बिचारो।
जाय सहाय भयो तब ही अहिरावन सैन्य समेत सँहारो।
को नहिं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥७॥


काज कियो बड़ देवन के तुम बीर महाप्रभु देखि बिचारो।
कौन सो संकट मोर गरीब को जो तुमसों नहिं जात है टारो।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु जो कुछ संकट होय हमारो।
को नहिं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥८॥

दोहा
लाल देह लाली लसे अरू धरि लाल लँगूर।
बज्र देह दानव दलन जय जय जय कपि सूर॥