अंतर्दृष्टि वास्तविक जीवन की शुरुआत है। अंतर्दृष्टि शुरू कैसे हो ?




ऐसे प्रारंभ करें। सड़क पर चलें, गवाह बनें। देखो शरीर चल रहा है..... और तुम अंतरतम के कोर से, बस देख रहे हो, साक्षी बनो, अचानक तुम पाओगे कि आजादी की भावना है। अचानक आप देखेंगे कि शरीर चल रहा है, आप नहीं चल रहे हैं।

कभी शरीर स्वस्थ है, कभी शरीर बीमार है। बस देखो, देखो और अचानक आपमें एक पूरी तरह से अलग गुणवत्ता की भावना होगी। आप शरीर नहीं हैं। बीमार शरीर है, ज़ाहिर है, लेकिन आप बीमार महसूस नहीं कर रहे हैं। शरीर स्वस्थ है, इसके लिये आपको कुछ नहीं करना है। आप केवल साक्षी, एक गवाह, दूर पहाड़ियों पर एक साक्षी की तरह।

ध्यान करने के लिए आपने खुद को शरीर से अलग रखना है। शाश्वत, जब आपका अपने शरीर का अवलोकन अधिक तीव्र हो जाये,  तब अपने मन के भीतर देखना शुरू करें। लेकिन शरीर का वो ध्यान जिसमें आप और आपका शरीर अलग है का मेजरमैंट करते रहिये, क्योंकि यह सकल (gross) है, और अधिक आसानी से देखा जा सकता है, इसके लिये ज्यादा जागरूकता की जरूरत नहीं होगी। एक बार जब आप अभ्यस्त हो जाते हैं, तो मन को देख शुरू करते हैं।

जो आप से अलग हो जाता है देखा जा सकता है। जो भी आप देख सकते हैं, आप यह नहीं कर रहे हैं। आप साक्षी चेतना हैं, आप गवाह (witness) हैं। , शरीर के भी और मन के भी, जब आप एक गवाह बन गये है। अचानक आप देखेंगे वहाँ कोई शरीर नहीं है और नकोई मन के साथ ।।। एक शुद्ध चेतना, बस सरल सरासर शुद्धता, मासूमियत, एक मिरर।

इस मासूमियत में, आपको पहली बार पता चलता है कि तुम कौन हो। इस शुद्धता में, पहली बार तुम अपने आस्तित्व को देखते हो, इसके पहले, तुम बस सो रहे थे, सपना देख रहे थे, अब आप कर रहे हैं वो जो जागर्त है। यही ध्यान की कड़ी जुड़नी शुरु होती है। इस क्रिया को धीरे धीरे बढायें।

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