मन की शांति के लिए उन चीजों को मन से बाहर निकालना होगा जो दु:ख बन गई हैं। यह आसान नहीं है। उन चीजों को बाहर निकालें कैसे? दु:ख का कारण बनने वाली चीजों को बाहर निकालने की विधा ही ध्यान है।
आज के समय मे हमारा ध्यान केवल पैसा और पैसा हि रह गया है, हमें सब के बारे मे सोचने का समय तो है पर अपने बारे मे कभी नही। हम जो भी करते हैं सुप्त अवस्था मे करते हैं, जैसे गाड़ी चला रहे हों। सब यन्त्रवत हो रहा है, ऐसे में मन को उस अवस्था मे लाना ज़हां सब शून्य हो जाये और आपको असीम आनंद की अनुभूति हो - वह ध्यान है
ध्यान कोई साधारण प्रक्रिया नहीं है किंतु यह इतनी साधारण भी है कि आम आदमी भी इसे सहज संकल्प के साथ अपने जीवन में उतार सकता है। सुख के लिए मन में शांति चाहिए। इसके लिए मन को एकाग्र करने की जरूरत होती है। मन की एकाग्रता से आने वाली शांति को पाने का मार्ग ही ध्यान है। यही ध्यान अष्टांग योग के अंतिम चरण में समाधि की अवस्था पा लेता है।
पहले अपने दु:ख के कारणों की सूची बना लें। फिर मन को एकाग्र कर उन्हें बाहर निकालने का प्रयत्न करें। इसके लिए जरूरी है कि यह प्रक्रिया निश्चित समय पर और नियमित हो। कुश या ऊन के आसन पर शुद्ध वातावरण में बैठकर अभ्यास करना चाहिए। प्रात:काल का समय इसके लिए सर्वोत्तम है।
आसन पर बैठकर पहले कुछ देर प्राणायाम करें। इससे श्वास स्थिर होगी। फिर अपने इष्टदेव का ध्यान करें। इस दौरान मन स्थिर नहीं होगा। इधर-उधर की तमाम बातें मन में आएंगी किंतु प्रयास करें कि मन अपने इष्टदेव पर स्थिर हो। दूसरी बातें आएं तो उन्हें मन से बाहर निकालें। धीरे-धीरे अभ्यास करें। पहले कुछ क्षण मन एकाग्र होगा फिर कुछ अवधि बढ़ेगी।
जिस दिन मन एक मिनट तक एकाग्र हो गया, समझ लो ध्यान का रास्ता खुल गया। आज के युग में दस मिनट का ध्यान लगा लेने वाला योगी कहलाने योग्य है। यदि पाप वासनाएं और कामनाएं सदा के लिए चली जाएं तो समझो आप परमयोगी हैं। ध्यान साधना है - साधना ध्यान है। यह जीवनभर शिविरों में अभ्यास के बाद भी नहीं आ सकता और एक योग्य गुरु के मार्गदर्शन से क्षणभर में आ सकता है। ध्यान का जीवन में घटना हमारी इच्छाशक्ति पर निर्भर है। इसके लिए ऐसे योग्य गुरु का मार्गदर्शन जरूरी है, जो ध्यान का आनंद ले रहे हों। शिविरों और ऐसे ही दिखावटी आयोजनों में ध्यान का नाटक हो सकता है। ध्यान लगाया नहीं जा सकता। ध्यान लगाने वाले बार-बार समय देखते हैं। अपने मार्गदर्शक से समय सीमा पूछते हैं। सच तो यह है, जब जीवन में ध्यान घटता है तो समय की सीमा रह ही नहीं जाती। बीता समय क्षण मात्र लगता है। ध्यान असीम आनंद है।
आज के समय मे हमारा ध्यान केवल पैसा और पैसा हि रह गया है, हमें सब के बारे मे सोचने का समय तो है पर अपने बारे मे कभी नही। हम जो भी करते हैं सुप्त अवस्था मे करते हैं, जैसे गाड़ी चला रहे हों। सब यन्त्रवत हो रहा है, ऐसे में मन को उस अवस्था मे लाना ज़हां सब शून्य हो जाये और आपको असीम आनंद की अनुभूति हो - वह ध्यान है
ध्यान कोई साधारण प्रक्रिया नहीं है किंतु यह इतनी साधारण भी है कि आम आदमी भी इसे सहज संकल्प के साथ अपने जीवन में उतार सकता है। सुख के लिए मन में शांति चाहिए। इसके लिए मन को एकाग्र करने की जरूरत होती है। मन की एकाग्रता से आने वाली शांति को पाने का मार्ग ही ध्यान है। यही ध्यान अष्टांग योग के अंतिम चरण में समाधि की अवस्था पा लेता है।
पहले अपने दु:ख के कारणों की सूची बना लें। फिर मन को एकाग्र कर उन्हें बाहर निकालने का प्रयत्न करें। इसके लिए जरूरी है कि यह प्रक्रिया निश्चित समय पर और नियमित हो। कुश या ऊन के आसन पर शुद्ध वातावरण में बैठकर अभ्यास करना चाहिए। प्रात:काल का समय इसके लिए सर्वोत्तम है।
आसन पर बैठकर पहले कुछ देर प्राणायाम करें। इससे श्वास स्थिर होगी। फिर अपने इष्टदेव का ध्यान करें। इस दौरान मन स्थिर नहीं होगा। इधर-उधर की तमाम बातें मन में आएंगी किंतु प्रयास करें कि मन अपने इष्टदेव पर स्थिर हो। दूसरी बातें आएं तो उन्हें मन से बाहर निकालें। धीरे-धीरे अभ्यास करें। पहले कुछ क्षण मन एकाग्र होगा फिर कुछ अवधि बढ़ेगी।
जिस दिन मन एक मिनट तक एकाग्र हो गया, समझ लो ध्यान का रास्ता खुल गया। आज के युग में दस मिनट का ध्यान लगा लेने वाला योगी कहलाने योग्य है। यदि पाप वासनाएं और कामनाएं सदा के लिए चली जाएं तो समझो आप परमयोगी हैं। ध्यान साधना है - साधना ध्यान है। यह जीवनभर शिविरों में अभ्यास के बाद भी नहीं आ सकता और एक योग्य गुरु के मार्गदर्शन से क्षणभर में आ सकता है। ध्यान का जीवन में घटना हमारी इच्छाशक्ति पर निर्भर है। इसके लिए ऐसे योग्य गुरु का मार्गदर्शन जरूरी है, जो ध्यान का आनंद ले रहे हों। शिविरों और ऐसे ही दिखावटी आयोजनों में ध्यान का नाटक हो सकता है। ध्यान लगाया नहीं जा सकता। ध्यान लगाने वाले बार-बार समय देखते हैं। अपने मार्गदर्शक से समय सीमा पूछते हैं। सच तो यह है, जब जीवन में ध्यान घटता है तो समय की सीमा रह ही नहीं जाती। बीता समय क्षण मात्र लगता है। ध्यान असीम आनंद है।
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