कल्प का अर्थ
‘कल्प’ शब्द का प्रयोग ऋग्वेद में पाया जाता है। जहाँ कहा गया है कि - ‘सृष्टिकर्ता ने सूर्य, चंद्र, दिन, पृथ्वी एवं अंतरिक्ष की, पहले की तरह, सृष्टि की।’ निश्चित तिथि वाला अत्यंत प्राचीन प्रमाण अशोक के अनुशासनों में पाया जाता है, यथा गिरनार एवं कालसी के चौथे लेख तथा शहबाजगढ़ी एवं मानसेहरा के पांचवे लेख से यह सिद्ध होता है कि कल्प के विशाल विस्तार के सिद्धांत तीसरी शती ई. पू. के बहुत पहले से ज्ञात थे।
बौद्धों ने भी कल्पों के सिद्धांत को अपनाया था, यह 'महापरिनिब्बानसुत' से स्पष्ट है- ‘हे भगवन्, कृपा करके कल्प में रहें । हे महाभाग, असंख्य लोगों के कल्याण एवं सुख के लिए कल्प भर रहें।’ ऐसी मान्यता है कि आदि काल में मानव-समाज आदर्श रूप से अति उत्कृष्ट था और क्रमश: नैतिक बातों, स्वास्थ्य, जीवन-विस्तार आदि में क्रमिक रूप से अपकर्श (decline) होता चला गया और सुदूर भविष्य में पुन: नैतिक बातों आदि का स्वर्ण युग अवतरित होगा।
सृष्टिक्रम और विकास की गणना के लिए कल्प हिन्दुओं का एक परम प्रसिद्ध मापदंड है। जैसे मानव की साधारण आयु सौ वर्ष है, वैसे ही सृष्टिकर्ता ब्रह्मा की भी आयु सौ वर्ष मानी गई है, परंतु दोनों गणनाओं में बड़ा अन्तर है। ब्रह्मा का एक दिन 'कल्प' कहलाता है, उसके बाद प्रलय होता है। प्रलय ब्रह्मा की एक रात है जिसके पश्चात् फिर नई सृष्टि होती है।
महायुग
प्रत्येक मनवनतरा 27 महायुग का बना है। हम इस मनवान्तर 27सवें महायुग में हैं।
वेद का कहना है। एक महायुग 4 युगों का एक संग्रह है। महा विशाल या बड़ा मतलब है।
4 युगों सत्य युग, त्रेता युग, द्वापर युग, कलयुग हैं। हम हमारे वर्तमान महायुग के कलियुग में हैं।
युग
सत्य युग एक महायुग के 40% समय के लिए रहता है - इस समय मनुष्य परमात्मा के चरणों में रहता है। जहां मानव का भौतिक अस्तित्व का इतना मतलब है की "जरूरत है" और वह परमेश्वर के साथ सीधे संपर्क में हैं
त्रेता युग महायुग के 30% के लिए रहता है - यहां बुरे कर्मों के दिखने की शुरूआत होती है, परन्तु अभी भी वहाँ सत्य की बहुतायत होती है, वास्तव में इस उम्र के 3/4 भाग अभी भी अच्छाई है।
द्वापर युग अपने युग के तीसरे चरण मे आता है, तथा पूरे महायुग के 20 प्रतिशत इसका दूसरा मतलब है, जहां अच्छे और बुरे कर्म लगभग बराबर राशि के होते हैं
कलयुग या काली युग (यहां काली का मतलब काली देवी नही काली रात से है) एक महायुग के 10% का समय अथवा 25% अच्छाई का युग होता है। सही भी है, आज के समय को देखते हुए सच भी है।
मनवान्तर
चार महायुगों का सम्मिलन एक मनवान्तर होता है और ऐसे 27 मनवान्तर का एक कल्प कहा जाता है। और ऐसे एक कल्प का ब्रह्मा का एक दिन और दूसरे कल्प की रात होती है।
इतना ही ब्रह्मा का जीवन है, इसके पश्चात नये ब्रह्मा का सर्जन होगा, तथा रामचरितमानस मे कहा गया है कि अगले ब्रह्मा हनुमान होंगे।
युगों की अवधि इस प्रकार है -
सत्युग 17,28,000 वर्ष
त्रेता 12,96,000 वर्ष
द्वापर 8,64,000 वर्ष
और कलियुग 4,32,000 वर्ष।
वेदों मे कहा गया है कि प्रत्येक महायुग कि समाप्ति तथा दूसरे महायुग के प्रारम्भ होने के बीच भी एक युग होता है जिसमें सब शून्य होता है।
गिनियस बुक आफ़ वर्ल्ड रिकार्ड्स ने कल्प को समय का सर्वाधिक लम्बा मापन घोषित किया है।
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